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Showing posts from March 4, 2018

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Sanskriti Is Alive - Rohit Kumar

She was bleeding and shivering. It was not one big wound, but many small ones. Multiple arrows had punctured all over her old and fragile body. She was under attack and needed help.  Whatsapp could not believe what she saw. She was a  small girl of 12, in her excursion to Dandakarnaya forest. It was night and she was looking for a place to rest. With her 'forward' learning method, she knew almost everything. But Dandakarnaya was something new. She made a mental note to thank her elder cousin Google for suggesting this trip. But she did not expect this old lady hiding in the forest. Whatsapp examined her close. Tattered and loose skin hung from her face, but she must have been very beautiful once. She rested on what looked like a bed of arrows, in strange angle to the hut entrance. Her head was slightly high, resting on pillow of vedas. She was surrounded by a shrub of leaves whatsapp had never seen, a small weired looking earthen glass and many other strange looki

बेचू - सिद्धार्थ सिंह

बेचू  शानदार शख्शियत का मालिक, आज तक मैंने ऐसा रोबदार चौकीदार नहीं देखा। उसके परिवार में दो पुत्रिया और एक पुत्र थे  कही भी शिकन नहीं थी उसके चेहरे पर चाहे दुनिया इधर की उधर हो जाए वो समय से चट्टान की तरह अपनी ड्यूटी बजा के ही जाता था। उम्र होगी ७० साल जब में २००० ई० में अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त कर रहा था।  मसलन अगर उसे शोले फिल्म के अंग्रेज के ज़माने के जेलर की पद्वी दी जाए तो कमतर नहीं होगा।  ( फोटो credited to JD Art & Design Twitter)                          हाथ में मोटा सा डण्डा, रौबदार लम्बी मूछें चिपटा हुआ गठीला चेहरा और  कम से काम साढ़े ६ः फीट लम्बा बैताल था वो।  हमारे स्कूल में कक्षा १० तक हाफ़ पैंट पहन्ना अनिवार्य था तो हम जिद्द्दी लौंडे घर से रंगीन फूल पैंट पहन कर स्कूल के गेट तक जाते और फिर बैताल के हाथो घूमते डण्डे के सामने अपनी पतलून आधी करते थे।   दिन भर उसकी चौकस निगाह जैसे हमी लौंडो पर रहती थी पानी पिने के लिए भी बहार निकले तो हमारी चुगली हो चुकी होती थी और गुरु जी के पतली छड़ी से पिटाई का सिलसिला रोजमर्रा की दिनचर्या बन चुकी थी। आदमी भी पुतले के तरह

कहना हिन्दि जिंदा है.....

कहना हिन्दी जिन्दा है ....  मरणसैया पे पड़ी हुई बुढ़ी माँ! दवा लेके आती हुई बेटी, रास्ते मे एक बड़े मुछ वाला व्यपारी बेटी से टकरा जाता है और दवा की बोतल गिर जाती है, सारा द्रव्य जमीन पर समेटने से भी अब वापस बोतल में नहीं जा सकता  और बिना दावा के माँ मर जाएगीं.... माँ की खाँसी थोड़ी कम हुई जब बेटी ने रुई के फाहे से दवा को माँ के मुँह में गिराया । आज कितनी कठनाई से उसने माँ की दवा उठायी थी फैले हुए उस जमीन से, बेटी की आँखों मे आसुँ आ गए उस दिन को याद कर के जब माँ कमाती थी बेटी स्कूल जाती थी और घर भी चलता था माँ के पैसों से। हीरा की माँ स्कूल टीचर थी नाम "हिंदी" । हिंदी जिंदा है या यूं कहें कि हिन्दि या फिर हिन्दी ज़िंदा है रुई के फाहे से गिरती हुई उस बून्द - बून्द दवा के सहारे जो वो छोटे-छोटे शब्द है जो आज की अंग्रेजी दुनियां यदा-कदा हिंगलिश बोलते वक़्त प्रयोग कर लेती है... हा हिन्दि जिंदा है! -निकिता सिंह 

नाट्यमंचन

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे  सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धना न्  मृत्योर्मुक्षीय मामृता त्  ॥ लेखनी की पारम्परिक धारा टूट चुकी है। जिस प्रगाढ़ प्रारभ्ध भूमि पर उसका जन्म हुआ वो मरणासन्न है और धूं-धूं करती चिताओं पर हूतात्माओं की चट-चट जलने की धवनि चहुंओर प्रतिध्वनिओं में सुनाई पड़ती है। एक कथाकार शमशान भूमि में प्रवेश करता है और अट्ठहास के साथ कुछ बोलता है।   कथाकार - मृत्यु शैया पर लेटी माटी और जलन के साथ आत्माओं का समागम उस निराकार से।  हा हा हा ब्रह्म फांस है क्या ये रचनाकारों का।  जलती चिताओं की ज्वाला भभक कर हृदयविदारक प्रतिध्वनियों और ध्वनियों के अगाढ़ आवाजों से गूंज उठती है।   कथाकार - क्या हुआ मृतुय्ञ्जय की परम्परा टूट गई।  या तुम्हारे कर्मो का फ्रतिफल मृत्युंजय ने स्वयं धारण कर लिया मुण्डो के हार के रूप में।   महाशमशान में चिताए अब कुछ मद्धिम हो गई है और ज्वालाएँ शांत वातावरण में केवल धुँए के अपार बादल के रूप में ऊपर उठ रही है अनंत  आकाश को छूने को।   कथाकार - तुम्हारी लेखनी के सारे पन्ने भी जला दिए गए है कि तुम्हारा नमो-निशां तक न बचे। हा हा हा

Marriage Interview

Kamini was standing in front of her mirror, dark black beautiful eyes, waist length black silky hair, sharp nose; she was famous by name of Indian beauty in her college. She holds an IIT degree working with WIPRO, learned classical music and katthak, but nothing she possess which can qualify her for selection as bride in today’s market.  After 6 rejections, Simmpi Bua’s constant suggestion of one month marriage diploma for kamini to change her looks and life style was finally welcomed by her mother. Pum-Pum, Pum-Pum……..continuous horn of Simmpi Bua’s car wakes her from day dreams. She took her bag touched her mother’s and father’s feet and finally she was in car with Bua ji on the way to Bua’s home for her so called one month marriage diploma.  Bua: See Kamini, I want you to be happy in your life, a marriage can’t fetch you anything if you don’t know what exactly you want from your marriage. Your mother is a very simple woman, she never follows any trend and she brought y

Its Raining Heavily...

This story is of “A” girl in her twenties. Good-looking, educated, smart, well-mannered, intelligent, wealthy, independent girl. Fortunately or unfortunately, this “A” girl represents 60% of educated WOMEN in Indian metros, who call themselves GIRLS, in the age of 25+ and they all have everything almost except the “REASON” of happiness. This “A” girl is named after the writer NIKITA, except name the character doesn’t have any relevance or resemblance with the writer’s life. 8.00 A.M. MOM: Are you going office today? NIKITA: its raining heavily…. MOM: So, taking leave? NIKITA: How can i? told you hundred times we have board meeting today, and I am on BOARD now, so please …. MOM: Did you bump your car last night, when you were drunk and driving? NIKITA: kya ho gaya hai subah subah? MOM: No, just asking, general knowledge… NIKITA: I do not drink alcohol, no accidents too, yes I am going office today, probably will return by  8.00 p.m.  enough o

RIP Lisa...!

No, Lisa has not died. She is only “Resting in Peace” now-a-days. Lisa is not a “WOMAN” she is an “IDEA” and an  IDEA  can  CHANGE YOUR LIFE!   Moral of the Story:  Lisa can change your life! Lisa Rai/Miss Idea : With the contradictory name she represents our INIDA. Lisa’s grandfather has given her this name. He has some moral values for the development that British Shashan gave to India so as his tribute to them “Lisa”, Rai is surname, which cant be altered, as even in British India the Indian culture couldn’t be touched/ altered/murdered. Lisa never let her name die. Graduated from convent she listens to rock, read Rumi, but in her heart Ghalib has his place. Let’s come to the point how Lisa is an Idea and not a Woman? Sumit , Lisa’s best friend , was having difficulty in understanding TRIGONOMETRY, Lisa said he shall go and ask his lecturer to have an extra lecture on the topic , like him there will be many students having difficulty on the matter, unite all of th

रस्सी बांटता जोड़ा

बात उन दिनों की है जब में कक्षा १ या २ में पढ़ रहा था। उस समय शहर में इतनी भीड़-भाड़ नहीं हुआ करती थी बच्चे मस्ती से टहलते हुए अपने विध्यालय की और प्रस्थान कर सकते थे और गाहे- बगाहे रस्ते में टूटी दीवारों पर चढ़ते हुए; बालु के ढ़ेर में खेलते, छोटे सीपी और पत्थर बिन्ते; कपड़े मैले करते बड़े शान से अपने स्कूल में पहुँचने की मुनादी दोस्तों मित्रों के साथ शोर मचा कर किया करते थे।  मेरे स्कूल के रास्ते में सड़क किनारे एक छोटी सी  जगह बन गई थी जहाँ एक वृद्ध जोड़े ने अपनी बड़ी सी दुनिया बसा रख्खी थी। मिट्टी की दीवार, फूस की छत और उसके बगल में थोड़ा सा मिट्टी का ऊँचा ढ़ेर बना कर बैठका बनाया गया था।   मेरे स्कूल जाते समय वृद्ध पुरुष रस्सी बाटता रहता और वृद्धा घर के अंदर खाना पका रही होती जिससे निकलने वाले धुँए को फूस की छत के ऊपर ऊँचा उठता दूर से देखा जा सकता था। जाने क्या पका रही होतीं थी वो कि सुगंध मेरे जहन में आज तक घर कर गया है जो शायद उन यादों को आज यहाँ लिखने को प्रेरित कर रहा है।  पर प्रेरणा कहाँ तक उस महक का स्वाद दिला सकती है ख़ैर।   दोपहर को स्कूल से लौटते समय वृद्धा रस्सी बांट 

बिरहा गीतकार

शोध में प्रवेश पाने का अपना ही मजा हैं आप के पास अपार समय होता है। घरवालों और आप के शिक्षकों को आप के नकारेपन की अंतिम सिमा का प्रसस्ति पत्र के रूप में डॉक्टर प्रदान करने को पर्याप्त समय होता है जब आप कागज का एक दुकड़ा भर पाने को अनगिनत साल देने को तैयार हो जाते है इस बीच जनसामान्य आप को महाखलिहर कहे तो इस से बड़ा सम्मान मेरे हिसाब से नहीं हो सकता। अपने शोध के पहले ही साल मैंने अपने विश्वविद्ध्यालय के पास एक पान की दुकान खोज निकाला जहां मैं अपना सारा समय सार्थक कार्यों में लगा सकता था। वही मेरी मुलाकात मेरे बिरहा गीतकार से हुई। पेशे से वो टाली चलता था और गाहे बगाहे मरे हुए लोगो को ठिकाने पर भी पहुँचा दिया करता था।  उस का पहला बिरहा राग सुनने का मौका तब मिला जब जेठ की तपती गर्मी में हम कुछ मित्र कदम्ब के पेड़ के निचे बीच सड़क पर उसकी टाली पर आराम फरमा रहे थे। बिरहा के बोल बता दिया तो शोध की शिक्षा बुरा मान जाएगी। उसकी कहानी कुछ ऐसी थी एक बार एक राजा ने अपनी सुन्दर और सुशील लड़की के लिए वर की तलाश शुरू की। तलाश रुकती है एक बीर योद्धा के साथ और दोनों विवाह के पश्चाताप ओह पश्चात अपने

हस्ताक्षर

बात उन दिनों की है जब मैं अपने वर्तमान मोहल्ले में नया- नया ही आया था। एक सशक्त हस्ताक्षर से पहली बार रुबरु होना वैसा ही था जैसा इस कहानी की गुणात्मक और तारतम्यता है। पुरे मोहल्ले में कोई भी घर उनके नाम पर खोजा जा सकता था चाहो तो शहर के किसी भी कोने में पूछ कर देख सकते थे।  बड़ा सा बैठका और उन बुजुर्गवार के रिटायरमेंट के बाद तो वो सदैव गुलज़ार ही बना रहता था, लोगों का जमावड़ा सा लगा रहता था।  सफ़ैद धोती और बनियान में वो चेहरे की चमक देखते ही बनती थी और माथे पर लाल तिलक।  कभी- कभी सूती सफ़ेद कुरता और धोती मानो मोहल्ले का कोई बड़ा बिना एक शब्द बोले आप के अन्दर तक झांक रहा हो और प्रतिउत्तर में खामोशी में ही अपने चेहरे की भाव-भंगिमाओ से आप के सभी मनोभावों के उधेर-बुन को सहलाता भी जा रहा हो।   नीम का पेड़ और बगल में शमी के फूलों से लदा खुबसूरत आँगन किसी अनोखी दुनिया को ही दर्शाता था। अपनी, लोगों से कम ही घुलमिल पाने की आदत पुरानी है जो अभी तक साथ ही चल रही है और शायद मृत्यु शय्या पर चार कांधो के साथ ही छूटेगी। खैर हस्ताक्षर के बैठका के सामने से ही गली जाती थी तो आते- जाते उनके यहाँ लगे ज