Skip to main content

Posts

Showing posts from February 4, 2018

Total Pageviews

Followers

A journey to the top of the world (well almost …) Part-I

If you had never ran 5km in his life, climbing 5 kms up in the sky would seem to be nothing but crazy. In May 2017, I decided to join a crazy bunch to Everest Base camp trek. A decision which entailed spending 13 days in sleeping bag, facing a mild blizzard, knocked down by a crazier bunch of people running downhill for Everest marathon and getting back home on a helicopter. And yet it motivated people to limp their way up the breathtaking Khumbu valley to base camp. We flew from Kathmandu (1400m) to Lukla (2860m), often referred to as the most dangerous airport in the world. The bumpy landing we had at Lukla and death of pilot and co-pilot five days later while landing at Lukla, endorsed the label. But the most amazing view Himalayas offered there, made us forget everything else. Not to forget very helpful and hospitable Sherpa community. We started from Lukla check post by dancing on a popular Bollywood song with a Nepalese police officer. The way up to Phadking (2610

आरोही- सिद्धार्थ सिंह

जीवन में दो ही पथ है ऐसा मेरा मानना है एक जो आपको ऊपर ले जाता है और दूसरा नीचे, सभी जानते होंगे- ये भी मेरा मानना है।   कहानी एक गुमनाम आरोही की जो इन सब के चक्कर में कभी नहीं पड़ा.  लम्बा कद मानो किसी ताड़ के पेड़ का आधा तना हो और शरीर में गजब की फरहरता। अक्सर उसको लोगो के बीच कुछ सीखता हुआ ही देखा।  किसी को एक बार मान लिया तो फिर दुनिया इधर की उधर हो जाए, कोई फर्क नहीं पड़ता। गरीबी और अमीरी के बीच-पुल पर फसा, मै उसे बड़ा होते देख रहा था। हर काम में रोचकता का इतना सम्मान करना, शायद मैंने उससे ही सीखा।  जिस समय वो अपने सपने बुनता तो हैरत होती कि उन सपनो को देखने का क्या फायदा जो कभी पुरे नहीं होंगे। पर उसका कहना था वो उन सपनो को कभी सपने नहीं रहने देगा। मुझे लगता उसने न जाने कब का हकीकत को समझना छोड़ दिया है।   दृढ विश्वास इतना कि अपने को उन सब चीजों से दूर रखता जो छणिक सुख तो देते थे पर लम्बे समय में वो उसके सपनो को तोड़ देते थे। जीवन के जितने रंग उसे मिले उनका भरपूर आनंद लेते हुए वो उन से बराबर दूरिया बनाता आगे बढ़ता जा रहा था।   बी.कॉम की पढ़ाई कर रहे जब उस के सारे

पहलवान की दावत

न जाने कितने लोगो ने शहर में होने वाले दंगलों का लुत्फ़ उठाया होगा कभी आमने सामने दाव-पेच लगाते पहलवानो को देखने का मौका तो नहीं मिला पर कहानियां जरूर सुनी है अपने दद्दा पहलवान से- गठीला शरीर और रोबदार आवाज़ का मालिक कुछ ६०-६५ की उम्र होगी। जब भी मिलता उनसे एक पिता का भाव अभिभूत होता और वो हमें अपने जीवन के अनेको अनुभवों के विषय में विस्तार से बताया करते. कभी पहलवानी का जिक्र होता तो दद्दा, सीकिया पहलवान से लेकर न जाने कितने किस्से सुना जाते.  अक्सर कॉलेज के दिनों में हम कुछ दोस्त गाँव की ओर निकल जा ते और वहाँ के शांत जीवन का आनंद लेते. खेत के मेढ़, हरियाली, कुआ-तालाब, शाम की गोष्ठी और न जाने क्या-क्या, सच है हर दृष्य में एक अद्भुत कशिश है वहां. एक बार वहाँ रात को रूकने का मौका मिला तो पहलवान की मेहमान-नवाजी कौन अस्वीकार करता.   दद्दा ने बड़ी सी बटलोही में मझे हुए खानसामे की तरह खाना बनाने का प्रबंधन शुरू किया। किस्म-किस्म के मसालों को सही मात्रा में मिलाते हुए लम्बे समय तक पकाने के बाद कटहल के बड़े-बड़े टुकड़े डाले गए, और अंततः लम्बे इंतजार के बाद खुशबु से सराबोर करती वो दिव्

हमसफ़र

अक्सर जीवन के पड़ाव में मिलने वाले हमसफ़र समय के साथ पीछे छूट जाते है और आदमी आगे निकल जाता है कुछ सीख कर; ऐसी ही एक कहानी है 'हमसफ़र.' शहर गुमनाम, आदमी का नाम नहीं; कहानी जरूर दिलचस्प है. उससे पहली बार मुखातिब होना  बड़ा कष्टदाई था. बड़ी सी काया, स्वक्छंद ठहाके और मोटी-मोटी अंगुलियों को हवा में घुमाकर शब्दों में प्राण भरता मानो साक्षात् चलता फिरता रोडरोलर हो घर्र-घर्र करता; एक बार अगर किसी को चिपट ले तो हो गया सड़क की तरह रोल्ड और सपाट.  २० लोगो की प्रारंभिक जॉब ट्रेनिंग के दौरान वो हमें बहुत कुछ सीखा रहा था और साथ ही साथ जीवन के कई आयामों या कहो तो अनुभवों को अपने आप हम में घोलता जा रहा था. जब ट्रेनिंग ख़त्म हुई तो हम में से ६ लोगो को ज्वाइन करने का मौका मिला और मैं निकम्मे की तरह पीछे छूट गया. ज्वाइन क्या करता आखिर में होने वाली परीक्षा के परिणाम ऐसे थे. ऐसा नहीं है कि क़ाबलियत नहीं थी पर वो इम्तिहान की कुलबुलाहट और परिणाम की मादकता ले डूबी; ऐसा मुझे लगता है खैर किसी ने सही ही कहा है 'मन का न हो तो और भी अच्छा.' कहानी में नया मोड़ तब आया; जब हमसफ़र ने अगले ही

The Lone Ganga’s Putra

Once someone told me while having a prolonged conversation on Indus Valley Civilization that they were the Master of Rivers . It was amazing to know; how they flourished along rivers for centuries & shifted to Ganga Valley in later periods. Gone are the days when people used to throng at the banks of river Ganges when transporting vessels unloaded their supplies. Pilgrims from all around came along these ships and resided here taking an oath not to leave the city in any circumstances.   I met an individual who was dwelling at the Ghats of River Ganges courageous enough to call upon as a Master of Rivers.      A lanky stature without a single tinge of fat on his body; elongated beard; wearing vests & a dhoti; in mid 60s he had a peculiar glaze in eyes; my master of river had enough to talk about the river beyond which he knew nothing of importance and was a proactive listener with intent. He elaborately discussed how the river changes its appearance from morn

The Painter of Time

Don’t ask me when I started to admire him as a protagonist but surely he has a substantial mark on my life’s journey as well. This story “The Painter of Time” is of an individual whom I met and defined first time as a lean stature of dark complexion; a teacher; a father of three kids; a husband and an ardent self-believer. I met him first time in an art exhibition which was his creation or his world. I submitted one of my paintings on themed exhibition called ‘Deforestation is Death’ containing a tree with single leaf upon a skull with a headline stating- This Could Be the Last Leaf of Hope. Knowing I have interest in paintings; the painter started to admire and shared his work with me to decorate the exhibition which now I am pretty sure was his only solace in this world. The Painter used to bicycle daily at school with his kids along a long sack of brown colour. I never saw him gossipping with other teachers or spending time at fields but peeked at him while passing to

My Legacy

Generations have passed but heroism still lingers around few influential ones who have the power to write the history. This era of digitisation has provided a platform for masses to share their life stories & let the common man decide whether their journey has legacy to mark a spot in history. Come along this blog to read the stories of masses who fought the battles of life’s nitty- gritty  to fulfil the dreams & passed on legacy to newer generations.