Skip to main content

Total Pageviews

Followers

आरोही- सिद्धार्थ सिंह



जीवन में दो ही पथ है ऐसा मेरा मानना है एक जो आपको ऊपर ले जाता है और दूसरा नीचे, सभी जानते होंगे- ये भी मेरा मानना है।  

कहानी एक गुमनाम आरोही की जो इन सब के चक्कर में कभी नहीं पड़ा. 

लम्बा कद मानो किसी ताड़ के पेड़ का आधा तना हो और शरीर में गजब की फरहरता। अक्सर उसको लोगो के बीच कुछ सीखता हुआ ही देखा।  किसी को एक बार मान लिया तो फिर दुनिया इधर की उधर हो जाए, कोई फर्क नहीं पड़ता। गरीबी और अमीरी के बीच-पुल पर फसा, मै उसे बड़ा होते देख रहा था। हर काम में रोचकता का इतना सम्मान करना, शायद मैंने उससे ही सीखा। 

जिस समय वो अपने सपने बुनता तो हैरत होती कि उन सपनो को देखने का क्या फायदा जो कभी पुरे नहीं होंगे। पर उसका कहना था वो उन सपनो को कभी सपने नहीं रहने देगा। मुझे लगता उसने न जाने कब का हकीकत को समझना छोड़ दिया है।  

दृढ विश्वास इतना कि अपने को उन सब चीजों से दूर रखता जो छणिक सुख तो देते थे पर लम्बे समय में वो उसके सपनो को तोड़ देते थे। जीवन के जितने रंग उसे मिले उनका भरपूर आनंद लेते हुए वो उन से बराबर दूरिया बनाता आगे बढ़ता जा रहा था।  

बी.कॉम की पढ़ाई कर रहे जब उस के सारे मित्र कॉलेज लाइफ का आनंद उठा रहा होते थे तो उसकी सधी हुई सी दिनचर्या थी अपनी क्लॉस के बीच बचे समय में वो दूसरे इण्टर के विधार्थियों को अकाउंट पढ़ता था। इस तरह पढ़ते पढ़ाते उसके तीन साल बीत गए घर की जरुरत काम होने वाली नहीं थी और टूशन से उतनी रकम नहीं मिलती थी कि उसके घर का खर्च चल सके।

जब सभी मित्र एम्० बी० ए० की धूम में मैनेजमेंट पुणे चले गए तो उसने बी० एस० सी० आई० टी० का कोर्स करने का फैसला लिया लोगो ने उसकी लगन और उसके ज्ञान का खूब मजाक उड़ाया। उसी का दिल जनता होगा घर से इतने दूर उसने किस तरह अपनी पढाई करने घर का खर्च चलाने और अपनी पढाई पुरी करने का फैसला लिया होगा।  ख़ैर; अकसर मेरी कहानियों की तरह यहाँ भी ये सब कुछ भी मैं एक ख़ैर पर छोड़ता हु।  

अपनी पढाई करने के बाद जब वो वापस लौटा तो सभी साथियों के हाथ में नौकरियाँ थी और वो पुनः बेरोजगार बच गया।  गजब का जज्बा था उस इंसान में उसने पुनः अपनी टूशन देने का काम शुरू किया और अपने घर खर्च का हिसाब करने लगा।  एक बार मित्र जब आगे निकल जाए तो फिर पीछे मुड़ के देखने वाले कम ही होते है उसके साथ भी ऐसा ही हो रहा था, ख़ैर। इस बार उसने अपने खर्चे से १ लाख रूपए जोड़े और प्रोगरामिंग का हाइली एडवांस कोर्स किया; ख़ैर।

उसकी पहली नौकरी बंगलौर में लगी और  अगली नौकरी के लिए उसे ६ः महीने  में ही अमेरिका से ऑफर आ गया।  आज वो अपने पुरे परिवार के साथ वही सेटल है, ख़ैर। 

चल मुसाफ़िर मंजिल तो इंतजार में बैठी है,
आज नहीं तो कल इस्तक़बाल तो करना ही है तो आज ही क्यों नहीं।  
~ शून्य 

- सिद्धार्थ सिंह 


Comments