ललित कला विभाग का " देवानंद " देवानंद मेरे लोकप्रिय नायक रहे हैं। इतने प्रिय की उनका बड़ा सा पोस्टर मैंने दीवार पर चिपका रखा था , मगर ललित कला विभाग का " देवानंद " रंग , रूप , गुण किसी मामले में सदाबहार देवजी के सामने नहीँ टिकता था। फिर उसका नाम " देवानंद " कब और क्यों पड़ा बता नहीँ सकती। हमारा उससे पहला परिचय इसी नाम के साथ हुआ। बात उन दिनों की है , जब बनारस में काशी विद्यापीठ के ललित कला विभाग में प्रवेश लिया था और कक्षाएं शुरू ही हुईं थीं। वरिष्ठों द्वारा परिचय लेने - देने का सिलसिला जोरशोर से चल रहा था। विभाग से सटकर ही भारत माता मंदिर है और दोनों इमारतों को मिलाकर बड़ा सा कैंपस बना हुआ है , जहां बैठकर हम पेड़ की पेंसिल ड्राइंग या लैंड स्केप बनाया करते थे। परिचय के आदान - प्रदान से बचने के लिए कैंपस ही हमारा प्रिय स्थल बन गया था। यहीँ देवानंद की भी मनचाही जगह थी। मैले कपड़े , बढ़ी हुई दाढ़ी , बेतरत
Generations have passed but heroism still lingers around few influential ones who have the power to write the history. This era of digitisation has provided a platform for masses to share their life stories & let the common man decide whether their journey has legacy to mark a spot in history. Come along this blog to read the stories of masses who fought the battles of life’s nitty-gritty to fulfil the dreams & passed on legacy to newer generations.