वैसे तो यकीन मानिए स्वास्थ्य से जुड़ी चीजों जैसे कसरत, हरी सब्जियां, जूस, फल को लेकर आज तक मैंने सिर्फ खयालों का पकवान ही पकाया था और बात हमेशा कल पर टल गई। नए फ्लैट की बालकनी से सामने दिखने वाला खुला मैदान और उसके आगे सड़क, यही आकर्षण अगली सुबह ही मुझे जगा कर बालकनी में ले गया। और यही मेरी पहली मुलाकात अपने "हम कदम" से हुई। सामने की सड़क जो न जाने कहा जाती थी, उस पर तमाम लोग टहल रहे थे। एक पल के लिए बचपन में घूमे मेले की याद ताजा हो गई, किन्तु अगले ही पल लगा कि मेरे स्वास्थ्य सम्बन्धी टालमटोल पर आघात हो गया। ऐसा लगा किसी ने मेरा प्यारा खिलौना छीन लिया, जिससे मैं रोज़ जी बहलाया करती थी।
इस आघात से आहत मैं कई दिनों तक चैन से सो नहीं सकी। बिस्तर पर करवट बदलते सुबह का इन्तजार रहता और सुबह 5 बजते ही पांव खुद ब खुद बालकनी में पहुँच जाते। कई दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा। इस दौरान मेरा भरम था या सच आज तक नहीं पता, पर मुझे रोज़ लगता की आज कुछ मॉर्निंग वाकर बढ़ गए हैं। साथ ही, यह जिज्ञासा भी सर उठा रही थी कि यह सड़क आखिर जाती कहां तक है। उधर, अब टालमटोल नींद पर भी भारी पड़ रहा था, सो एक सुबह मैं उठी और कदम को बालकनी के बजाए हम कदम (मॉर्निंग वॉकर) की ओर मोड़ दिया। तब से आज तक ये सिलसिला जारी है। एक दूसरे को जाने बिना, बातें किये बिना हम सभी एक दूसरे को पहचानते हैं और किसी एक की अनुपस्थिति पर तब तक आशंका से भरे रहते है, जब तक वह दुबारा दिख न जाए। अब हम कदम के ये कदम कब तक साथ देंगे ये तो नहीँ कह सकती, फिलहाल कई वर्षो से टल रही बात की शुरुआत तो हुई।
-सोनी सिंह
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