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बेड टी- मोनी सिंह

मेरी एक बहुत ही प्यारी सखी है,, उसने एक दिन मुझे किसी लव मैरिज वाले जोड़े की कहानी सुनाई मेरी उस फ्रेंड की फ्रेंड अपने लव वाले मैरिज पर बहुत ही उत्साहित थी जो उसने फैमिली के लगभग अगेंस्ट जा कर की थी। वो महिला मेरी सखी के घर शादी के बाद से ही दोपहर का समय बातो में बीत जाए, इसलिए आया करती थी। कुच्छ महीनों तक़ तो उसकी बातों से हमे अपने शादीशुदा जीवन में बस कमियां ही दिखती रहीं। 

फिर वह कई दिनों तक़ दोपहर को नहीं रही थी तो हम ही उसके घर उसका हाल पूछने पहुचे उस वक़्त वहां उसका पति बाहर जाने को तैयार था और अपनी घड़ी बांध रहा था।जोड़ी तो बहुत सुन्दर थी और इस आधुनिक जोड़े का पहनावा, घर, रहन- सहन सब हमें प्रभावित कर रहा था। पति को छोड़ने वह दरवाज़े तक गयी ,पति ने उसे गले लगाया औऱ दोनों ने एक दूसरे को देर तक हाथ हिला कर विदा किया। 

अब हम तीन सोफे पर बैठे थे। उसके चेहरे पर अब वह चमक नहीं थी, हमने अपनी-अपनी चाय ख़तम की और तब तक़ इधर -उधर की बात करते रहे,बहुत देर बाद उस नवविवाहिता ने कुच्छ टूटे -फूटे शब्दो मे बताना शुरू किया,जैसा के कभी कभार उसका पति ही उसको बेड टी दिया करता है और इस बात को बहुत ही गर्व से उसने मेरी सखी को काफ़ी बार पहले भी बताया है,, आज वैसे ही पति उसके पास चाय लाया पर पत्नी की अभी और देर तक सोने की इच्छा थी, उसने कहाँ के चाय रख देना,मैं पिलूंगी। इस पर पति ने उसको अपशब्द कहे, कहाँ के कैसी पत्नी है वो, एक तो पति चाय लाता है और दूसरे वो उठ कर पीने की जगह और आराम करने की इच्छा रखती है, कहती है बाद में पीती हूँ। उस नवविवाहिता के लिए शायद यह पहला आघात हो लेक़िन एक पत्नी के लिए पति का कभी कभार यह व्यवहार कोई नई बात नही थी। मैं मन ही मन दोहरा रही थी,के आज यह पत्नी बन गयी है।

यह 'पत्नी" है जो समाज के लिए , अंततः एक महिला ही तो है जिसका कोई भी ठिकाना नहीं। एक महिला जो जन्म तो देती है,पालती भी है पर पाल सकने की स्थिति में नहीं होती, और जो उसको और उसके बच्चो को पालता है वह पिता है उसका पति है और है तो पुरूष ही।

तो इस एक कहानी में एक ऐसा पति है जो पत्नी को प्यार भी करता है लेकिन उसका भी अहम है जो एक स्त्री से सुनकर चोटिल हो जाता है। वह पत्नी को बेड टी तो दे सकता है लेक़िन उस बेड टी को दुबारा गरम कर के कभी देगा भला, यह पुरुष का अपमान होगा। स्त्री चाहे तो इस दोबारा चाय बनाने और गरम करने की प्रक्रिया को बहुत ही मनोयोग से पूरी उम्र कर सकती है। 

और उसका यह कोमल मन है जिसमे यह सृष्टि समाहित है, तभी तो हम हिन्दू घरती को माता कहते है, गौए को भी माता ही कहते है गंगा को भी माता ही कहते है,,, यह स्त्री ही है जो सह लेती है दुत्कार को भी। प्रतिकार करे तो कई जीवन फ़िर बिखर जाए।

'खुद को हज़ारो दुकड़ो में बिखर जाने देती है, यह एक स्त्री ही है जो बटोरे रखती है,हर कड़ी को।'

पुरुष वर्ग से क्षमाप्रार्थी।

-मोनी सिंह 

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