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एक नायिका का नायक -सिद्धार्थ सिंह 'शून्य'

एक नायिका का नायक 

प्रकृति का कोना-कोना एक सामान ही है बस लोगो का उस को देखने का नजरिया बदल जाता है जो तुम्हे लेखक तो किसी को कुछ और बनाता है। इसी तरह सभी नर-नारी भी एक ही सामान है चाहे दुनिया के किसी कोने में चले जाओ  बस जो हमारा देखने का ये नजरिया जो है न वही उन्हें अलग-अलग रूप प्रदान करता है। 

बाबा धुआँधार के शब्द मेरे कानों के पर्दो को झकझोर रहे थे सत्य क्या है क्या यही सत्य है।  

तो 'ऐस युसुअल' मैंने मुँह में एक पान का बीड़ा दबा लिया और रंगत घुलते ही पुचाक से थूक कर अपने रिक्शे वाले से कहा चलो भाई अब रिक्शा आगे बढ़ाओ चाहो तो तुम भी पान का एक बीड़ा खा सकते हो तो उसने कहा "बाओजी नशा बुरी चीज है।"  

मैंने कहा फिर क्या तब रिक्शा आगे बढ़ाओ या कोई मुहर्त निकलवाना पड़ेगा ?

मन फिर भी असमंजस में था धुआँधार बाबा के शब्द जो तेज होती सड़क की चहल-पहल में भी कानो को अब  तक झकझोर रहे थे ऐसे थे कि मानो जाने का नाम ही नहीं ले रहे थे।  

कुछ न समझ पाने की स्थिती में मैंने रिक्शे वाले से पुछा; अभी तो जवान मालूम होते हो शादी वगैरा तो हुई नहीं लगती खूब मस्ती से रात को दारू के पैक चलते होंगे ?  ज़िन्दगी मस्त कट रही होगी तुम्हारी क्यों?

उसने उत्तर दिया हा पहले तो ऐसा कभी किया नहीं और अब दो बच्चों के बाप होने के बाद जिम्दारियों में ऐसा मेरे हिसाब से किया नहीं जा सकता। मै अबाक रह गया और बाबा धुआँधार के शब्दों का गुंजन अचानक मेरे कानो में मानो बंद सा हो आया।  

मेरी उत्सुकता उस रिक्शे वाले के बारे में जानने की और बढ़ गई मैंने यु ही बात को आगे बढ़ाने के लिए उसके बच्चों  के बारे में पूछा।  किस क्लास में पढ़ते है तुम्हारे बच्चे ?  
रिक्शे वाले ने उत्तर दिया लड़का बंगलौर से बी० टेक० कर रहा है और बिटिया मास्टर्स करने के बाद सिविल की तैयारी कर रही है।  

गरमा गरम समोसे देख कर मैंने रिक्शा पुनः रुकवाया और मुँह का घुला पान पुच्च से नाली में फेक कर विधिवत कुल्ला किया और अपने रिक्शे वाले को भी समोसे दिलवाए। वो उसने रख लिया और कहने लगा साहब थोड़ी दूर ही तो आप को और जाना है वहा पहुंचा लूंगा तो एक दो फेर और हो जायेगा उसके बाद समोसा खा लूंगा। 

अब तो बाबा धुआँधार का क तक मुझे याद नहीं रहा कानो में घूमने की बात तो भूल ही जाइये साहब।  

मैंने जल्द समोसे वाले को पैसे चुकाए और रिक्शे पर पुनः बैठ गया।  इस बार रिक्शे वाले की फुर्ती तेज थी और मुझे उसके बारे में जानने की दिलचस्पी ज्यादा। 

लगता है अब वो स्वयं बाबा धुआँधार हो चुका था उसने खुद ही अपनी पुरी कहानी सुना डाली।  

बोला साहब बीवी अच्छी घर की रहने वाली है उसी के कथनानुसार चलता हु और रही बात बच्चों की तो वो मुझ पे गए है।  

कहानी यही समाप्त हो जाती है और इसकी विरासत क्या होगी मै आज तक नहीं जान पाया।  


-सिद्धार्थ सिंह 'शून्य' 







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