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"पगला की बाड़ी" - सोनी सिंह


बचपन की कुछ यादें मन पर छपी रह जाती है, जो गाहे-बेगाहे आंखों के सामने जाती हैं। कई बार तो इनका कोई तुक नहीं होता। ऐसा ही एक किस्सा है, जिसका ठीक-ठीक मतलब आज तक समझ में नहीँ आया। असमिया में बगीचे को बाड़ी कहते हैं। बचपन आसाम मेँ बीतने से बोलचाल में उन दिनों कुछ असमिया शब्द अपने आप शामिल हो गए थे। "पगला की बाड़ी" उसका यह नाम कब और कैसे पड़ा याद नहीं, मगर हम सभी उसे इसी नाम से पुकारते थे। बाड़ी का पिछला हिस्सा हमारे घर के ठीक सामने हुआ करता था, जो बांस के बेहद खूबसूरत बाड़े से घिरा था। 

हम बच्चों के लिए "पगला की बाड़ी" Alice की विस्मय मय दुनिया से कम नहीं था। नतीजतन अकसर हम करीब जाकर बाड़ के छेद से उसे झांकते। अंदर बहुत से फलदार पेड़ और फूलों से लदे पौधे थे, जो समान पंक्ति बना कर खड़े प्रतीत होते (स्कूल में हमारी पंक्ति कभी इतनी सटीक नहीं बनी) साथ ही ईट का रास्ता बना था। बीच में छोटी सी पोखरी थी। अथाह सुंदरता का आनंद सिर्फ दूर से ले सके। बाड़ी का रास्ता सड़क की ओर था, जिसके सामने से होकर हम स्कूल जाते और उस दौरान भी उधर निहारते जाते। यह किसी की निजी सम्पत्ति था। सामने पहाड़ों में बनने वाला झोपड़ीनुमा छोटा सा घर था, जिसमेँ एक बूढ़ी औरत अकसर दिख जाती थीं। बाड़ी का रास्ता घर से होकर गुजरता था, इसलिए भी हम उसमेँ प्रवेश करने की हिम्मत कभी नहीं जुटा सके।

ऐसा नहीं था कि सिर्फ हम बच्चों की ही उस बाड़ी में दिलचस्पी थी, कई दफे बड़ों को भी उसके बारे में बातचीत करते सुना था। बाड़ी की सुंदरता में मैं इतना खो गई कि असली मुद्दे से भटक गई। असल बात यह थी कि उस बाड़ी में रोजाना एक आदमी आता। साधारण कद-काठी का जिसके हाथ में एक छड़ी होती थी। छड़ी से वह पेड़-पौधों को यूँ मारता जैसे मास्टर साहब बच्चों की पिटाई करते थे। वह ऐसा क्यों करता था आज तक समझ नहीं आया, जबकि बाड़ी की देखभाल भी शायद वही किया करता था, क्योंकि उसके अलावा बाड़ी में कभी-कभार ही कोई और दिखता। बड़ों की बातों से पता चला कि वह पागल है और बूढ़ी औरत का बेटा है, शायद यहीं वजह रही हो कि लोगों ने उसका नाम "पगला की बाड़ी" रख दिया था। 

- सोनी सिंह 
*(फोटो किसी आम इंसान की है जो कहानी की लोकेशन के आधार पर लगाई गई है क्रेडिटेड तो वेबसाइट। )






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