इस कहानी में एक ऐसा हीरो है जिसके असफ़ल होते रहने के कई रिकॉर्ड थोड़े है। फ़िर आप कहेंगे के भला इस तरह का व्यक्ति भी कभी सराहनीय हो सकता है क्या।।
हाँ मेरा हीरो सराहनीय तो नहीं ही है लेक़िन सच कहूं तो जीवन में जब एक उम्र बीत जाती है तो हम किसी हीरो-वीरो को नहीं ढूंढ रहे होते है, जीवन ने इतनी लताड़ लगाई होती है के बस सारा कांसेप्ट ही बदल चुका होता है।
उसने ऐसा ही कहाँ मुझे यही शब्द थे। कोई बात अनोखी नहीं थी मगर उसका चेहरा सौम्य था, चमक आँखों मे वैसे ही थी, मेरी बातों न उसके आत्मविश्वाश को थोड़ा भी कम नहीं किया हो जैसे। फ़िर हममें और भी कई बातें हुई लेकिन मेरे मन में उसके शब्द छप चुके थे,, नई कंपनी है तो फ़िर से का क्या मतलब।
सही तो है हर मौक़ा ही तो नया है चाहे हार ही जाए या जीत ही जाए। अवसर है तो क्यूं गवाएं। हाँ अब तक़ असफल ही हुये हो पर उम्मीदवार बनने के अवसर को क्यों जाने दे, उम्मीद है तो हौसला है, हौसला है तो फ़िर जीत है, शायद ज़वेद अख़्तर ने लिखी है।।
"उस उम्मीद से बड़ी बात क्या होगी,, जो मैं बढ़ता हूँ और जिसे दुनियां तोड़ देती है और मैं फ़िर से उसे सजाता हूँ।"
ये मैंने लिखी है।।
चलिये फ़िर मिलेते है।
शुभकामनाएं
- मोनी सिंह
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