Skip to main content

Total Pageviews

Followers

खिड़की वाली पड़ोसन- सोनी सिंह


खिड़की वाली पड़ोसन

महानगरों के जीवन में जितना महत्व डिब्बेनुमा घरों का होता है, उतना ही उनसे झांकती खिड़कियों का। खिड़कियां सिर्फ हवा और रौशनी के आगमन का जरिया होती हैं, बल्कि परिचय का भी। कम से कम महिलाओं के संदर्भ में तो मेरा नया अनुभव यही कहता है। व्यस्त दिनचर्या से थोड़ा सा वक्त निकाला और खिड़की पर पहुंच गए। फटाफट न्यूज की तरह दिनभर की खबरों का मिनटों में आदान-प्रदान कर फिर डिनर की तैयारी में जुट जाना है। यह प्रसारण अकसर दिन ढले होता है और खास मौकों जैसे तीज-त्यौहार, शादी, बर्थडे आदि पर विशेष गोष्टियां कई दफे आयोजित की जाती हैं।

खिड़की के उपयोग संबंधी मेरे ज्ञान चक्षु खोलने का सारा श्रेय मेरी "खिड़की वाली पड़ोसन" को जाता है। उसकी और मेरी खिड़की ठीक आमने-सामने है और रसोई भी यूं ही है। रसोई में काम करते हुए अकसर वह खिड़की के पास खड़ी दिखती, बालकनी में कपड़े डालते वक्त भी कई बार उस ओर दृष्टि गई, तो वह इधर-उधर झांकती-ताकती ही दिखाई देती और मालूम होता था जैसे की वो फिल्म शोले की मासूम बसंती हो वो यादगार किरदार याद जाता है, जिसे ज्यादा बोलने की आदत नहीं थी। शुरुआती ताक-झांक का यह सिलसिला विस्तारित हो आसपास मौजूद खिड़कियों के बीच आपसी बातचीत में कब बदल गया यह मेरी समझ के परे है। 

सार यह है कि टीवी सीरियल की तरह ही खिड़की भी महिलाओं का खासा प्रिय विषय है, जिसे वह कभी "miss" नहीं करतीं और छूट जाने पर उसका "repeat telecast" जरूर देखती हैं।

- सोनी सिंह 


Comments