
नीम का पेड़ और बगल में शमी के फूलों से लदा खुबसूरत आँगन किसी अनोखी दुनिया को ही दर्शाता था। अपनी, लोगों से कम ही घुलमिल पाने की आदत पुरानी है जो अभी तक साथ ही चल रही है और शायद मृत्यु शय्या पर चार कांधो के साथ ही छूटेगी। खैर हस्ताक्षर के बैठका के सामने से ही गली जाती थी तो आते- जाते उनके यहाँ लगे जमावड़े की बाते कानो में सुनाई पड़ती ही रहती थी।
लगता था मानो शहर की सभी परेशानियां उनकी अपनी ही थी; कोई न कोई अपने निजी कामो को लेकर उनके पास आया ही रहता था। उनके पास सभी के लिए पर्याप्त समय था और हल तो चुटकियों का काम था। धार्मिक आयोजन हो या सामाजिक सरोकार उनके बिना मुहल्ले का काम ही नहीं चल सकता था। जीवन के उतार- चढाव किस तरह अनुभवों में घुल कर व्यक्ति का निर्माण करते है या यूँ कहा जा सकता है हस्ताक्षर।
"चल राहे कही गुमनाम न कर दे तुझको, वक़्त की धूल में।" ~ शून्य
-सिद्धार्थ सिंह
लगता था मानो शहर की सभी परेशानियां उनकी अपनी ही थी; कोई न कोई अपने निजी कामो को लेकर उनके पास आया ही रहता था। उनके पास सभी के लिए पर्याप्त समय था और हल तो चुटकियों का काम था। धार्मिक आयोजन हो या सामाजिक सरोकार उनके बिना मुहल्ले का काम ही नहीं चल सकता था। जीवन के उतार- चढाव किस तरह अनुभवों में घुल कर व्यक्ति का निर्माण करते है या यूँ कहा जा सकता है हस्ताक्षर।
"चल राहे कही गुमनाम न कर दे तुझको, वक़्त की धूल में।" ~ शून्य
-सिद्धार्थ सिंह
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